उत्तराखंड: महिलाओं के लिए बरकरार रहेगा 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई हाई कोर्ट के फैसले पर रोक

उत्तराखंड सरकार की नौकरियों में राज्य की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल विशेष अनुग्रह याचिका (एसएलपी) पर आज सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दिया है। उत्तराखंड राज्य बनाम पवित्रा चौहान केस में यह स्टे लगाया गया है। उत्तराखंड लोक सेवा आयोग ने 10 अगस्त, 2021 की अधिसूचना के माध्यम से, उत्तराखंड संयुक्त राज्य (सिविल) / प्रवर सब-ऑर्डिनेट सर्विस परीक्षा 2021 का विज्ञापन किया था और लगभग 31 विभागों में विभिन्न पदों के लिए 224 रिक्तियों को सूचीबद्ध किया था।विज्ञापन अधिसूचना के खंड (8) में यह उल्लेख किया गया था कि क्षैतिज आरक्षण उन महिलाओं पर लागू नहीं होगा जो राज्य की मूल निवासी नहीं थीं।

याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में इसे चुनौती देकर कहा गया कि राज्य सरकार के पास अधिवास-आधारित आरक्षण प्रदान करने की शक्ति नहीं है और भारत के संविधान ने केवल संसद द्वारा अधिनियमित कानून द्वारा अधिवास के आधार पर आरक्षण की अनुमति दी है। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने 24 जुलाई, 2006 के सरकारी आदेश (जीओ) पर रोक लगा दी थी और याचिकाकर्ताओं को मुख्य परीक्षा में बैठने की अनुमति दी थी।

सीएम धामी ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं। हमारी सरकार प्रदेश की महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए कटिबद्ध है। हमने महिला आरक्षण को यथावत बनाए रखने के लिए अध्यादेश लाने की भी पूरी तैयारी कर ली थी। साथ ही हमने हाईकोर्ट में भी समय से अपील करके प्रभावी पैरवी सुनिश्चित की थी। 
बता दें कि प्रदेश सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया है कि आदेश निवास स्थान के आधार पर 'भौगोलिक वर्गीकरण' का प्रावधान करता है जो संविधान के तहत अनुमत है। उत्तराखंड राज्य की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और स्थायी वकील वंशजा शुक्ला पेश हुए।

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